टूट कर बिखरा हूँ तो अब खुद को समेट लूंगा, आँखों की बूंदों में, दर्द को देख लूंगा। शून्यता की गहराइयों में खुद को खोज लूंगा, मृत्यु का ये दुख मेरे दिल को छलनी करता है, पर इस दर्द से उभर कर, एक नया जीवन बुन लूंगा। ग़म के पहाड़ों को तोड़ कर, मंज़िल की राह बनाऊंगा, सपनों की सड़क फिर से बिछाऊंगा। न होने से होने और फिर से न होने का ये चक्र, समझ लिया मैंने, अब इस भ्रम को तोड़ दूंगा। टूटे कांच की किरचों में जीवन का प्रतिबिंब देखूंगा, हर टुकड़े की नुकीली धार से खुद को जाँचूंगा। इस चुभन भरे दर्द को अब मैं जी लूंगा, खून की धाराओं में नये सपनों को बुन लूंगा। प्यार का ये दरिया, कभी बहता, कभी सूखा, अब इन लहरों के संग मैं भी बह जाऊंगा। सपनों के महल, जो कभी बनते, कभी टूटते, इन खंडहरों में अब नई उम्मीदें बसा लूंगा। टूट कर बिखरा हूँ तो अब खुद को समेट लूंगा, इस अनंत यात्रा में एक नई दिशा पा लूंगा। (Broken Still Alive)