ज़िंदगी इतनी अकेले बीती है |
अगर कोई ज़िंदगी में सच में आ जाए, और सब मिल जाए तो
फिर मैं किस बारे में सोचूंगा ,
क्या बचेगा मेरी ज़िंदगी में मैं जिस बात पे रोऊंगा |
फिर मैं देख तड़पता खुद को कैसे हंसूंगा |
अगर तुम मिल गए इस दुनिया में सच में तो |
अकेलेपन के दर्द के खो जाने का दर्द होगा!!
अब तो आदत हो गई है खुद पर तरस खाने की
किसी के साथ खुद को देख, क्या मैं यकीन कर पाऊंगा ||
हंस दूंगा खुशी में या पुराने दर्द के मिट जाने पर रो जाऊंगा |
क्या मैं फिर अकेलेपन की तड़प को यूं ही महसूस कर पाऊंगा ||
सीख लिया है अकेला रहना कोटारो की तरह अब तो,
क्या मैं अब अकेलेपन को छोड़ सच में किसी के प्यार में पड़ पाऊंगा !?
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